निशा से प्रेरणा
ओझल हो जाते भूमि के मार्ग विभिन्न
छिप जाते मानवता के सारे पदचिन्ह
नज़र आता न कोई पथ न कोई पथिक भी
भविष्य-व्याकुलता बढ़ने लगती अधिक ही
सब मार्ग-पट्ट, सब मंज़िले खो जाती निशा में
अंधकार की काली चादर ही दिखती हर दिशा में
प्रगति के लिए राह दिखना अनिवार्य क्यों है?
अंधकार में रुकता सब कार्य क्यों है?
थम जाएं क्यों प्रतीक्षा में भोर की?
हो जायें निशि-प्रगति में विभोर ही
नई चुनौतियां बनती नई कृतियों की अवधारणा
अज्ञात जिज्ञासा होती नए विचारों की प्रेरणा
रात्रि होने पर ही जलाई जाती है आग
शोरगुल मिट जाने पर ही सुना जाता है राग
कोरे कागज पर ही होती है नए लेख की रचना
प्रलय में देखा जाता है नए जीवन का सपना
नए रास्ते बनाना है निशा की चुनौती
कोई मंज़िल नज़र न आये तो सब राहें सही
– Arnab Moitro