ऐ दिल तुझे ही है संभालना ,
बेवक़्त बेवजह गम और ख़ुशी का आना जाना
ज़िंदगीने कितने अहसान किये ,
सपनों भरी शब और शबनमी दिन दीये
अब उसके भी कुछ फैसले है तेरे लिए ,
अपनी बगीया तो सजाहीली , अब औरों के गुलशन भी तुमहकाये
बेहतर है तेरा समां , तेरा आशियाँ
औरों को भी देख , खिलने दे उनकी भी गालियाँ
हिम्मतसे बता की रोने से होंगी नही दूर मुश्कीलें
आसमान को ताकने से मिलेंगी नहीं साहिलें
इतना तो कर ही , सकते है
चांद सितारे ना सही , जुगनू बन , घने अंधियारे को
पल भर के लिए दूर करते है
ज्यादा ना सही हल्कासा उजाला बन सकते है
डॉ लता सत्यवान नाईक
गोवा