मैं अक्सर ज़िन्दगी में फुरसत
और फुरसत में ज़िन्दगी ढूंढता हूँ
इन लंबी ....बिछाई हुई पटरियों के बीच
कुछ स्टेशन, उम्मीद बनकर
सामने आ खड़ा होता है
वक़्त....खुली खिड़की से आवाज़ देता है
"चाय गर्म, गरम चाय"
मुझे भी जी लेने दे कुछ लम्हें
चाय की चुस्की में फुरसत ढूंढता हूँ
सामने की लंबी पटरियों में
ज़िन्दगी के खो जाने से पहले ....
मैं और मेरा फुर्सत
ढेर सारी बातें करतें हैं
इस वीरान सी स्टेशन में
फुरसत की समुन्दर में बैठ कर
सामने... पटरियों को देखते हुए
ज़िन्दगी की चहल पहल की इंतेज़ार करता हूँ
दूर से किसी ट्रेन की आने की आवाज़,
और मैं तैयार होने लगता हूँ
और फिर, चाय की केटली हाथ में लिए,
एक खिड़की से और एक खिड़की,
मैं ज़िन्दगी ढूंढता फिरता हूँ
ज़िन्दगी की भाग दौड़ में,
मैं अक्सर खुद को ट्रैफिक में
जूझता हुआ पाता हूँ
धुआँ और आवाज़ की इस ज़िन्दगी में
अपने लिए सोचने को,
वो दो तीन मिनट ढूंढता हूँ
स्कूटर पर बैठा
बन्ध रेल गुमटी देख, और
पास की स्टेशन से
ट्रैन की सिटी सुनकर,
मुझे दो मिनट की फुरसत दिखाई देता है।
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