Sarv Shrestha Prani by Arnab

(A poem on destruction done on Mother Earth by the Human Race and questioning the self-perceived superiority of Human)

*सर्वक्षेष्ठ प्राणी*

जन्म लिए हुए अल्प वर्ष
जन्म लिए हुए अल्प वर्ष
फैलाया जग में अपकर्ष
ऐसी विचित्र प्रजाति इंसान
किन्तु भरा अथाह अभिमान
कहता है अपनी ज़ुबानी
मैं हूँ सर्वश्रेष्ठ प्राणी

ना अधिक बुद्धि न कोई बल
आत्म पोषण में यह अकुशल
निजी रूप से – वे खाते केवल
पूर्व मनुष्यों की महनत का फल
मानते वे हैं परम ज्ञानी
यह हैं सर्वश्रेष्ठ प्राणी

कहते किये आविष्कार महान
औषधियाँ, दूरभाष, अर्णव-यान
होता इनसे चंद लोगों का कल्याण
जायज़ नहीं देना अन्यों का बलिदान
शोषण से प्रगति की राह बनानी
यह हैं सर्वश्रेष्ठ प्राणी

साधनों की करी कार्य सिद्धि
हुई न इनसे हर्ष में वृद्धि
हर्ष है असलियत और अपेक्षाओं में
अंतर; सिद्धि माने नैतिक कार्यों में
माया में फसी ज़िन्दगानी
यह है सर्वश्रेष्ठ प्राणी

क्यों है बुद्धि गुण इतना अभिलाषित?
स्व उपयोग मात्र-यह वृत्ति पाशाविक
ना चिंता करते अधिक प्रकृति की
जो करते चूँकि स्वार्थ इसमें भी
भविष्य की पीढ़ियाँ बचानी
यह हैं सर्वश्रेष्ठ प्राणी

सैकडों वन-वृक्ष जलाये
पशु-पक्षियों के घर मिटाये
दिखावे में दो पेड़ लगाए
नाम अख़बारों में छपाए
कहा प्रकृति की जिम्मेदारी निभानी
यह है सर्वश्रेष्ठ प्राणी

कहते पायी अनन्य चेतना
समझते न अन्यों की वेदना
जताते धरती पर पूर्ण अधिकार
बाकी जीव उपभोज्य, बाधाकार
अन्तरविवेक की ऐसी वाणी?
यह है सर्वश्रेष्ठ प्राणी

बढ़ी सामाजिक, आर्थिक विषमता
मिलता ना सब को समान मौका
दमन भी करते वे गरीबों का
पहनाते इसे कानूनी चोगा
कहते ये स्थिति है सयानी
यह है सर्वश्रेष्ठ प्राणी

युद्ध करते हैं यह आपस में
संघटित करने कृत्रिम सरहदें
बनाये धर्म, जाती, रूप-रंग
ढूंढे विभाजन के कई ढंग
रचते इनकी गौरव कहानी
कैसे सर्वश्रेष्ठ प्राणी?

About the author :

Mr. Arnab is an engineer who also writes poetry. He is in his 30s and currently based at US.

Sarv Shrestha Prani by Arnab

2 thoughts on “Sarv Shrestha Prani by Arnab

  • April 15, 2021 at 1:37 pm
    Permalink

    আমি তো হিন্দি ভাষায় লিখতে পারবো না।ওটা আমার অক্ষমতা।
    আমি ইংরাজীতেও লিখতে পারবো না।কবি নিজেই ইংরাজী ভাষার মহাসমূদ্র চষে ফেলেছেন, সেখানে সৈকতে নুড়িও যে কুড়োতে শেখেনি, সে কী বলবে ইংরাজীতে?

    আমি বাংলাতেই লিখতে চাই।
    প্রথমেই বলি যে, হিন্দি পড়তে পারলেও, তা’ একেবারেই ‘বাঙালী-মান’এর পড়া। আর, সেদুটা-ই হয় আমার দ্বারা।
    দু’বার কবিতাটা পড়লাম পাঁচ মিনিটের ব্যবধানে। ঐ পাঁচ মিনিট নিজে ভাববার চেষ্টা করেছি, কী পড়লাম? কতটা বুঝলাম? আর, কী বুঝলাম?
    আমার কবিতাটা পড়তে খুব বেশী অসুবিধা হয়নি। এর অর্থ হৃদয়ঙ্গম, তাৎক্ষণিক ভাবে যতটা হয়েছে, সময়ের সাথে সাথে হয়তো বা তা’ আরও বহু শাখাপ্রশাখায় পল্লবিত হয়ে আরও সমৃদ্ধই করবে আমাকে।কিন্তু, আমি অনেক ভাল ভাবনার সাবলীল ও সুন্দর প্রকাশ যে দেখলাম, এটা নিশ্চিত।

    আফশোষ এই, যে হিন্দি কবিতা, শায়রী ইত্যাদি পড়তেও জানতে হয়। সেটা না জানলে হিন্দি কবিতা পাঠএর প্রাথমিক যে মজা, আনন্দ, সেটা পাওয়া যায় না।ওখানে একটু ‘ঘাটতি’ পড়েই যায়। সেটা তো কবির ত্রুটি নয়।পাঠকের ত্রুটি। পাঠক হিসাবে সেটা স্বীকার না করাটা ভুল হবে।
    কখনও অন্যের মুখে হিন্দি কবিতা পাঠ শুনে যে মজাটা পাই, তার সাথে তুলনা করেই নিজের সেই গুণগত মানএর ঘাটতির কথাটা বলছি।

    তরুণ কবির আরও নতুন নতুন সৃষ্টির ডালি আসবে, পাঠক তা’তে আপ্লুত হবে, কবিকে বরণ করে নেবে আপন হৃদয়ে।এই কামনা করি।

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